Monday, May 26, 2014

याद आणा छन बचपन का दिन

याद आणा छन बचपन का दिन।
आज याद आणा छन बचपन का दिन।।
बचपन का दागड्या,दगड्यों का झागडा,
झगडूं का ऊ दिन...
आज याद आणा छन बचपन का दिन।।

दिन दोफरा मा खेलणू कु जाण
ब्याखुनी कु बासी खाणु,
कांच की गोळी, माचिस का पत्ता
गुडिया कु खेल
ढुन्गा की गाड़ी, डब्बा की रेल,
कख गिन ऊ दिन
आज याद आणा छन
बचपन का दिन।।
बरसात मा नंगी नयाणा
फिर माँ की मार खाण,
ऊ माँ कु बुथाण,
नि बिसरी सकदु मी
बचपन का दिन कन क्वे भुलाण।
ऊ दादी की कथा,कथों मा डौर
डौरी कु माँ का कुछिली मा सेण,
नि बिसरी सकदु मी
बचपन का दिन कन क्वे भूलोंण।
दिन मा दादा कु समझाण
राती कखडी चुना कु जाण,
बाबा कु पढाण, ऊ झूटी नींद आण,
दीदी की गाळी, पर फिर समझाण,
याद आणा छन कन क्वे भुलाण।
याद आणी च कथा ओली माई
कख हरची होलू
बचपन कु अतुल गुसाईं।
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
अतुल गुसाईं(जाखी)


Wednesday, May 21, 2014

टेहरी का वैरी

धुनारों कु गौऊ छौ टीरी
धुनारों कु बसयूं छौ टीरी,
घी दूधकी खान अर

स्वर्ग समान छै टीरी।

सबी येका बैरी रैनी।
टीरी तै मिटे की गैनी।।

पैली दुशमन धरती रै,
1803 मा पूरी टीरी हिले दे,
इन भून्चन आई.........
कि मीलों दूर सालों तक
ह्यूंचल डौरी कू कंपणू रै।

गौऊ का गौऊ बांजा ह्वीन
रुणा कू क्वी नि रैन।
खाप ताणी धरती हंसणी रै
धुनारों कु क्वी नि रैइ।।

या धरती की पहली मार छै,
स्वर्ग जन टीरी पर सबौ कि खार छै।
एक बार फिर टिरी पनपी की आई,
सुदर्शन शाहन टीरी राजधानी बाणाई।।

दूसरी मार गोरखो की रै...
टीरी फर आक्रमण कै
एक एक करी सभी मरेनी,
गोरखा अगने बीढदी गैनि।

गढ़वाल गोरखो कु गुलाम ह्वे
गोरखोन अपणी मनमानी कै,
प्रघ्घुम्न शाह न तब आवाज उठे,
गोरखोंन ऊकी आवाज मिटे।।

प्रघ्घुम्न शाह देरादूण मा मारे गैन।
सुदर्शन शाह न तब अंग्रेजों दगण
मिलीके गोरखा भगेन।

1814 और नालापाणी कि छै बात
गोरखों कु आई काळी रात,
सुदर्शन शाहन चक्रव्यू रचाई,
गढ़वाल वटी गोरखा भगाई।।

तीसरी मार राजवो की छै,
पूरी टीरी लूटी की खैई,
श्री देवसुमन जी न राजशाही कू विरोध कै
पर जान का सिवा हाथ कुछ नि आई।

आखरी मार पाणी की रै,
जैन पूरी टीरी डुबे दे।
टीरी त डुबी,
दगड मा इतिहास भी गै,
टीरी डुबाण ओळो तै
जरा भी दया नि ऐ।।

टीरी हमेशा कष्टों मा रै,
देवता पुकारी क्वी नि ऐ।
सबी लोगों अपणी जान लगे,
आखिर मा पाणिन
टीरी डुबे के अपणी तीस बुझे।
अतुल जाखी(सर्वाधिकार सुरक्षित)


Monday, May 12, 2014

खूब च रे..........

नर मंगणू कुकड़ी
रिस्वत मा, देवतों चैणी बखरी,
बिन रिस्वत कु डौर नि बजदु,
दारू मंगदु जागरी। खूब च रे.......... देसी बिकदी घर घरों मा, कच्ची बणेणी छनी, रिस्वत देकी अमीरों कु नौकरी, गरीब रैगी तनी।। खूब च रे.......... हाथ जोड़ी ठगे गिन, अब विधानसभा मा छन वो, बिजली पाणी रोड़ चबे गिन, अब डंकार लेणा छन वो। खूब च रे.......... प्रधान जी कमीशन खान्द मुन्सी सीमेंट बिकान्द, मजदूरों कु मजदूरी नी, ध्याडी ठेकेदार उड़ान्द। खूब च रे.......... सरकरी दवे डाक्टर खान्द, गरीबों फर सुई चुभान्द, मास्टर कभी स्कूल नि जांद, डिग्री पैसों मा आन्द। खूब च रे.......... कन्डोम गोळी ब्यो सी पैली, बाद मा क्वी नि खान्द, जनसँख्या वृधी रुकि जौ जु, क्वी नेता नि चान्द।। अतुल जाखी(सर्वाधिकार सुरक्षित)


Friday, May 2, 2014

मेरी जिंदगी त

जाकिर हुसैन जन तबला वादक
बिस्मिल्लाह खान जन शहनाई वादक
मी भी बणी सक्दू छौ पर......
मेरी जिंदगी त
जौ की फुन्फरी अर
तेलका कनस्तर बजाण मा कटे।
धोनी अर सचिन जन
मी भी खेली सकदु छौ पर
मेरी जिंदगी त .........
वे पुरण जुलाब का बौल सिलण मा कटे।
एबरेस्ट पर चढण क्वी बडी बात नी
पर मेरी जिंदगी त........
काचा लखणू कु
बाणों अर डाळौ मा कटे।
कई मैडल दौड़ मा,
मी भी जीती सकदु छौ
पर मेरी जिंदगी त...
सारियों का बान्दर भगाण मा कटे।
शेक्सपियर जन कविता सोनेट
मी भी लेखी सकदु छौ पर,
मेरी जिंदगी त......
निगोळ की कलम अर
पाटी पर लिखणा कु
कमेणा खुज्याण मा कटे।
लेखणा कु उन त बहुत कुछ च,
पर मेरी जिंदगी त.....
सुचण मा कटे।
©अतुल जाखी(सर्वाधिकार सुरक्षीत)