Wednesday, November 26, 2014

जय बुन्खाले काली माँ

जय बुन्खाले काली माँ
 दया कु भण्डार, दाता माँ,
 जू भी आन्द द्वार त्यारा,
 कभी नि जांन्दू खाली माँ।।
 जय बुन्खाले काली माँ।।
 परदेसों जयां तेरा ग्वाल बाल,
 पूजा कू आणा होला घार।
 ऋद्धि-सिद्धि सबौं देई माँ,
 बोगठ्या भैसा बागी बली ना
 देणा छा प्यार.....
 प्यार मा खुस रई माँ।।
 जय बुन्खाले काली माँ।।
 चडौला त्वे मा श्रीफल
 अर फूलों कु हार माँ,
 चूड़ी बेन्दुली लाल चुन्नीन
 करुला तेरु सोला श्रृंगार माँ।
  जय बुन्खाले काली माँ।
  तेरा खप्परों मा चडोला,
  फूल, धूप ज्यूँदाळ  माँ 
  तेरु धुप्यणूं द्योला
  कड़ू तेल लाल अंगार माँ।
  जय बुन्खाले काली माँ।।
  गाजा बाजा भंकोरों संग
 लगोला तेरु मण्डाण माँ,
 छुटी मोटी ग़लती भगतों से होला त
 भक्तों से नि रूसाण माँ।।
 जय बुन्खाले काल
अतुल गुसाईं (सर्वाधिकार सुरक्षित)27/11/2014

Sunday, November 23, 2014

पधान बोड़ा दगड द्वी चार छुईं गप्पी हौळ बुते का टैम फर.....

औ...बैठ हुक्का पे जा रे पदान बोड़ा,
भोळ बटी बुते भी च रे पदान बोड़ा।।
हौळ तैल सारी च, बिजनू ले के पौछी जै रे
पदान बोड़ा।
म्वाळा म्यार काकर धरियां छन,
निसडू छपला ढापिर पुड्यां छन रे
पदान बोड़ा।
मेरी ब्वे मैता जई परसी बटी,
कल्यारा खुण बमणी बौ कु
बोली दे रे पदान बोड़ा।
तै बसुळा भी पळै दे
छपला ख्वींडा हुयां छन रे
पदान बोड़ा।
बल्द भी त्यार मरगुल्या छन,
द्वी चार सिटगी भी खुजे दे रे
पदान बोड़ा।
हूणू त कुछ नी च पुंगडा डोखरु मा,
बांदर चपत कैई जाणां छन,
पर
बांजा भी कन क्वे छुणिन रे
पदान बोड़ा।
अतुल गुसाईं (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Thursday, November 13, 2014

बाल दिवस की शुभकामनाये...

 छुटा नौना कथगा प्यारा
गौऊ का त्यारा गौऊ का म्यारा।
छुटा नौना........................
जात पात न धर्म का गारा।
बैठिया रैंदिन एक ही गुठ्यारा।।
छुटा नौना गौऊ का त्यारा।
छुटा नौना गौऊ का म्यारा।।
देश कु भविष्य,
भविष्य का उज्याळा।
भारत माँ का छन दुलारा।
छुटा नौना गौऊ का त्यारा
छुटा नौना गौऊ का म्यारा।।
चाचा नेहरु तै छा प्यारा
मेरु भी एक ही च नारा,
लिंग जाँच नि कारा,
पेटा मा ही यूँ नि मारा,
भोळा कु भारत यूँका ही सहारा।
बाल दिवस की शुभकामनावों सहित..
कथगा प्यारा, कथगा प्यारा,
छुटा नौना गौऊ का त्यारा।
छुटा नौना गौऊ का म्यारा।।
अतुल गुसाईं (सर्वाधिकार सुरक्षित)


Thursday, November 6, 2014

राहू रैन्द राठ मेरा माट मा.......


बेरोजगार मुसो सी ....

कविता पढने से पहले इस छोटे से लेख को जरुर पढ़े। बेरोजगार मुसो सी ....मूसो गढ़वाली में चुहे के लिए बोलते है। 
एक दिन की बात है मैं सो रखा था एक चूहा बहुत देर से परेशान कर रहा था ,उस से तंग आ के मैं उसे मारने के लिए मैंने चूहादानी (पिंजरा) लगा दी और बेचारा फंस गया। लेकिन जब मैं उसे मारने वाला था तो उसे देख के मुझे लगा इसे क्या फायदा ये भी तो अपना पेट भरने के लिए मेरी तरहा भटक रहा है ...प्रस्तुत रचना इसी पे आधारित है.....

मी झूट कम सच ज्यादा लेखदू..

प्रस्तुत रचना आज की पीड़ी पे एक ब्यंग है।
मी झूट कम सच ज्यादा लेखदू।
बासी रोटी मि आग मा सेखदु।।
बिगड़ी गिन रे तुमरा नौना नौनी।
जौंका नाम छन कुकर सी जौनी टौनी

बीजे कखडी........

बीजे कखडी, मेरी इस रचना में सिर्फ गालियाँ है जो मैंने हम सब ने बचपन में गाऊ के चाची बोड़ी दादी इत्यादि के मुह से खाई थी।शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने चोरी की कखडी न खाई हो,प्रस्तुत रचना चोरी की कखडी खाने के बाद जो गलिया मिलती है उसी पे आधारित है। किसी भाई बहन को अगर ये रचना बुरी लगे तो माफ़ी चाहता हूँ।


आज मिन आखरी पैक लगे