Thursday, February 26, 2015

मोदी जी हम वे पहाड़ा का छाँ


मोदी जी हम वे पहाड़ा का छाँ
जख रेल नि चलदी,
बड़ी मुसकिल से त यख गाड़ी मिलदी,
हमरी समस्या आप तै ध्यान मा रखण चैन्द,
हम तै यांका बदला अलग से बजट मिलण चैन्द।
आप नयाँ छाँ मी पता च,
पैला बजट मा पहाड़ों मा रेल नि आई सकद,
पर हमरा घोड़ा-खचरों कु चारा मिली त सकद।
अब आप तै एक अलग से बिल बणाण पड़लू,
या फिर रेल बजट मा  हमुकू अलग बिराण पड़लू।
आखिर हम भी त ये देश का नागरिक छाँ,
बैठ्यां तुमरा ही अच्छा दिनों का सारा छा।
ब्याली ये पहाड़ तै तुमरो बजट पसंद नि आई,
कले कि ये ये पहाड़ हाथ कुछ भी नि आई।
खैर यू पहाड़ त हमेशा ही आंसू बगोंद आई,
ब्याली भी बिचरों दिन भर रुणू राई।
अतुल गुसाईं जाखी (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Sunday, February 22, 2015

न भै अतुल न इन कै त नि ह्वे सकद स्वच्छ भारत।।

न भै अतुल न इन कै त नि ह्वे सकद
स्वच्छ भारत,
नौना तुमरा आलो- काचो छन खांणा,
बटों - बटों मा छन तब थुपडा लगाणा।
जैकु लग जखी लगणू वखी पिचकाणू,
भांती- भांती का बीमारियों धई लगाणू।
न भै अतुल न इन कै........
पीठ पैथर तुम पान गुटका खाई की,
पाल्यों- पाल्यों दीवालों फर छा धुकणा,
पीठ ऐथिर....
स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत कु
नारा छा लिखणा।
न भै अतुल न इन कै........
या...आ 
ब्वारी बेटी तुमरी, खौड-पात
बाटा- घाटों मा छन जमोणा,
अर भैंसा गाडा-गदीनों छा नहोणा।
नि ह्वे सकद स्वच्छ भारत,
सरकार पर छाँ तुम दोष देणा,
अर अफ तुम कुछ ज़िम्मेदारी नि छा लेणा।
न भै अतुल न इन कै त नि ह्वे सकद
स्वच्छ भारत।।
अतुल गुसाईं जाखी (सर्वाधिकार सुरक्षित)

 Date-23/2/2015

Wednesday, February 18, 2015

उत्तराखंड ग्वाया लगाणू।

मेरी किसी राजनेता या किसी पार्टी से जाती दुश्मनी नहीं है, यह कविता मेरा सिर्फ दर्द मात्र है इसे अन्यथा ना ले। इस से पहले भी मैंने कई राजनीतिक व्यंग लिखे,
कई लोगों कू बुरा लगा, कई लोगों ने डराने धमकाने की कोशिस भी की, मैं उन भाईयों को सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ की मैंने आज तक जो भी लिखा, उसे मैंने आप ही लोगो से सुना, समाचार पत्र-पत्रीकाओ मे पढ़ा और उन्ही बातों को सिर्फ मैंने अपने शब्दों मे बयां किया है....फिर भी किसी को बुरा लगे तो माफी चाहता हूँ ...और लिखने के लिए मुझे कोई रोक नहीं सकता क्यूँ की मैं भी आजाद देश का स्वतंत्र नागरिक हूँ। खैर बातें तो होती रहेंगी...हाल फिलाल प्रस्तुत रचना उत्तराखंड ग्वाया लगाणू का आनंद ले।
उत्तराखंड ग्वाया लगाणू।
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बोला हर दा यू क्या च हूँणू
यू उत्तराखंड क्यां कु रुणू ,
कैले क्वी येका आंशू नि फुंजणु
कैले क्वी ये नि बुथाणू ,
14 साल कु ह्वे गे उत्तराखंड
कैले यू आज भी ग्वाया लगाणू।
कोच येकी ब्वे, कख च येकू बुबा,
कले च यू भूका कु चिल्लाणू,
हर पाँच साल मा उन
द्वि-द्वी आन्दा तुम,
फिर कले च यू आज भी
छोरा – छपिरा सी जिंदगी बिताणू।
कोच उ, जु येकू आँखा घुराणू,
अनाथ सी समझी येतै लत्याणू,
तुम बुना की सब ठीक ठाक चलणू,
फिर कले नीच यू अपणा,
हाथ खुट्टा हिलाणू।
बोला हर दा कुछ त बोला,
14 साल बाद भी कले च यू,
ग्वाया लगाणू।।
अतुल गुसाईं (सर्वाधिकार सुरक्षित)