Wednesday, April 15, 2015

तै निर्भय परदेशों नि जावा

तै निर्भय परदेशों नि जावा
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गढ़वाली भै बन्धों यखी रावा,
स्ये निर्भय परदेशों नि जावा,
तै निर्भय परदेशों नि जावा॥
हौल लगावा गोर चरावा
चकबंदी कारा खेती बचवा,
चकबंदी कारा खेती बचवा,
सगोड़ी- पतोडियों बिज्वाड़ जमावा
सेरा – डोखरों अन उगावा,
डाली लगावा फल बिकावा,
चकबंदी कारा खेती बचावा,
स्ये निर्भय परदेशों नि जावा।।
बख़रा ल्यावा, ढिबरा चरावा,
ऊन गाडा, ताकुलो रिंगावा,
चकबंदी कारा घास बचावा,
भैंसी पाला दूध विकावा,
स्ये निर्भय परदेशों नि जावा।।
बांजा पुंगडों रिंगाल लगावा,   
रिंगाल तै उपयोगी बड़ावा, 
जल्वोटों मा म्वारा बुलावा,
सैत निकाली की सैत बिकावा,
लया-राडू कु तेल बड़ावा,
लगला-बोटियों भी खूब लगावा,
स्ये निर्भय परदेशों नि जावा।।
चकबंदी कारा खेती बचावा।।
चकबंदी होली जब मेरा पहाड़,
खेती मा मिललु यखी रोजगार,
आली हरियाली मिललु रोजगार,
कैका मुंड़ा माँ नि होलू भार।।
कैका मुंड़ा माँ नि होलू भार।।
ये गरीबो कु संदेश...
पौंचावा गौं- गौं मेरा गढ़देश,
पौंचावा गौं- गौं मेरा ह्यूं का देश,
चकबंदी कारा मेरा पाहड़े धाती,
हरियाली ल्या मेरा पहाड़े माटी,
चकबंदी कारा मेरा पाहड़े धाती।
चकबंदी करा मेरा पाहड़े धाती।
अतुल गुसाईं जाखी (सर्वाधिकार सुरक्षित)