Wednesday, June 17, 2015

आखिर क्या क्या नि बिकणू बजार मा,

आखिर क्या क्या नि बिकणू बजार मा,
मर्द ह्वे की भी मर्द,
मर्द होणा की दवे खुज्याणू बजार मा।
आखिर क्या क्या नि बिकणू बजार मा,
तेरी स्या कज्याण क्या कु लिई,
भाई साब ! जु तू जिस्म खुज्याणी बजार मा।
अपणी घारा की बेटी ब्वारी तुमरी टुप लुकाई,
दूसरों बेटी ब्वारी की इज्जत बिकाणा तुम बजार मा।
आखिर क्या क्या नि बिकणू बजार मा,
बांज, बुरान्स, गंगा, यमुना कु देश छोड़ी की,
हवा पाणी खुज्याणी तू बजार मा,
सारी उम्र तु बालब्रह्म चारी बणी रई
बुड़ेन्दा स्याणी खुज्याणी छै तु बजार मा।
आखिर क्या क्या नि बिकणू बजार मा,
कभी कभार त मी खित हैंस आंदी
जब मी सुणदो....................
नेता, पुलिस सरकरी कर्मचारी
सब बिकणा छन बजार मा,
अर भगवान मत्थी बटी बोनू रौन्द
यू त नर छन,
हम भी त बिकणा छा बजार मा।
सर्वाधिकार सुरक्षित, अतुल गुसाई जाखी