Sunday, October 23, 2016

आदरणीय भीष्म कुकरेती जी का दगड़ लिखाभेंट..


प्रणाम भीष्म कुकरेती जी,
जन्म दिवस -२ मार्च सन १९८६
गाँव- जाख,  पट्टी- कण्डारस्यूं , जिला- पौडी गढवाल उत्तराखंड,
पढाई –स्नातक,
वर्तमान- E-80  south anarkali street no .6 near jagat puri delhi 110051
फोन-8802374427
 साहित्यक ब्यौरा आपक साहित्य पर समीक्षकों कि राय भीष्म कुकरेती : आप कविता क्षेत्र मा किलै ऐन ?
अतुल गुसाईँ- एक पीड़ छाई जिकुडी मा अपणा भाषा कु आपणी संस्कृति कु अर दगड मा खुद छै जैन लिखणा कु मज़बूर कौरी , उन त मी थै कविता लिखणा शौक नि छौ, कविता लिखणा शौक द्वी चार साल बटीन च, बचपन से म्यारु शौक चित्रकारी मा रै स्नातक भी मिन चित्रकारी से ही करी पर जब नौकरी का बाना दिल्ली आयूँ त ई भागदौड की ज़िंदगी मा कभी चित्रकारी करणा कु मौका नि मिली अर जौ खैरी-विपदा, हैंसी खुसी पर रंग लपोडणा कु दिल करदु छौ ऊं थै मिन फिर कविता कु रुप दे दीनी .
 भीष्म कुकरेती : आपकी कविता पर कौं कौं कवियुं प्रभाव च ?
अतुल गुसाईँ-  हरीश जुयाल कुटुज अर शेर दा अनपढ़ जी .
भीष्म कुकरेती: आपका लेखन मा भौतिक वातावरण याने लिखनो टेबल, खुर्सी, पेन, इकुलास, आदि को कथगा महत्व च ?
अतुल गुसाईँ- टेबल, खुर्सी कु त ज्यादा महत्व नी च सिर्फ पेन और डायरी दगड मा रैण जरुरी च, कविता का भाव त पैदल चलदा रस्ता मा भी ऐ जांदिन, हां इकुलास कु काफी महत्व च कलै कि इकुलास मा ज्यदा सोचदु आदिम .
भीष्म कुकरेती:. आप पेन से लिख्दान या पेन्सिल से या कम्पुटर मा ? कन टाइप का कागज़ आप तैं सूट करदन मतबल कनु कागज आप तैं कविता लिखण मा माफिक आन्दन?
अतुल गुसाईँ-  मि अधिकतर पेन और डायरी कु हि प्रयोग करदु वेका बाद कभी-कभार कम्पुटर मा भी टाइप कैरी देंदु.

भीष्म कुकरेती:. जब आप अपण डेस्क या टेबले से दूर रौंदा अर क्वी विषय दिमाग मा ऐ जाओ त क्या आप क्वी नॉट बुक दगड मा रखदां ?
अतुल गुसाईँ- मि पेन और डायरी हमेशा दगड मा ही रखदु और राती सिरणा तैल, अर जब भी  क्वी विषय दिमाग मा ऐ जांद झट वे लेखी देंदु.
भीष्म कुकरेती:. माना की कैबरी आप का दिमाग मा क्वी खास विचार ऐ जवान अर वै बगत आप उन विचारूं तैं लेखी नि सकद्वां त आप पर क्या बितदी ? अर फिर क्या करदा ?
अतुल गुसाईँ- इन अक्सर खौला मेला, ब्यो बराती मा कथगी बार ह्वे जाँद, अर जब मेरा मन मा क्वी खास विचार आंदिन त मि सोचदू घौर जै की लेखी द्योलु, घारम याद ऐ गे त ठीक च, नि आयी त थोड़ा दुख जरुर होंद.
 भीष्म कुकरेती:. आप अपण कविता तैं कथगा दें रिवाइज करदां ?
अतुल गुसाईँ- या मेरी सबसे बडी कमजोरी च कि मि दोबारा कम ही देखदु पर अग्वाडी जरुर ध्यान देलू .
 भीष्म कुकरेती:.. क्या कबि आपन कविता वर्कशॉप क बारा मा बि स्वाच? नई छिंवाळ तैं गढवाळी कविता गढ़णो को प्रासिक्ष्ण बारा मा क्या हूण चएंद /आपन कविता गढ़णो बान क्वी औपचारिक (formal ) प्रशिक्षण ल़े च ?
अतुल गुसाईँ-मिन  कविता गढ़णो बान क्वी औपचारिक प्रशिक्षण नि ले यूँ अपना आप आयी गैन अर कविता गढ़णो वास्ता कैथै प्रशिक्षण लेणा कि जरुरत भी नि होंद शायद, या त कुदरत की देन च जु कै कई फर दैण च.  कविता वर्कशॉप क बारा मा मिन कभी सोची त नी च पर  कविता वर्कशॉप जरुर होण चैद.
भीष्म कुकरेती:. हिंदी साहित्यिक आलोचना से आप की कवितौं या कवित्व पर क्या प्रभौ च . क्वी उदहारण ?
अतुल गुसाईँ- हिंदी  साहित्य भी मि पढ़दु छौ  पर हिंदी साहित्य कु मेरा कवित्व जीवन पर क्वी खास प्रभौ नी च.
भीष्म कुकरेती:. आप का कवित्व जीवन मा रचनात्मक सूखो बि आई होलो त वै रचनात्मक सूखो तैं ख़तम करणों आपन क्या कौर ? (Here the poet took Sukho as happiness and not DRY days in the life of poet when he can’t create poetry)
अतुल गुसाईँ- मेरा कवित्व जीवन मा जब भी रचनात्मक सूख आंद त मि अधिक्तर समय अपणा परिवार दगडी बितांदु.
 भीष्म कुकरेती:.कविता घड़याण मा, गंठयाण मा , रिवाइज करण मा इकुलास की जरुरत आप तैं कथगा हूंद ?
अतुल गुसाईँ-जब भी मेरु दिल कविता लेखणा कु करदु त मि नि चांदु कि क्वी मी थै परेशान नी  कौर इन टैम फर अगर गलती से कैकु फोन भी ऐ गे त मी थै वे फर भी गुस्सा आंद.
भीष्म कुकरेती:. इकुलास मा जाण या इकुलासी मनोगति से आपक पारिवारिक जीवन या सामाजिक जीवन पर क्या फ़रक पोडद ?
अतुल गुसाईँ- मेरु परिवार हमेशा मी थै सहयोग करदू अर समाज दगडी मी तालमेल बने की चलदु.
भीष्म कुकरेती:. कबि इन हूंद आप एक कविता क बान क्वी पंगती लिख्दां पं फिर वो पंगती वीं कविता मा प्रयोग नि करदा त फिर वूं पंगत्यूं क्या कर्द्वां ? .
अतुल गुसाईँ-वीं पंगती मी अलग सी डायरी मा लेखी देंदू अर वीं पंगतीन और एक नयी कविता बनी जांदी.  
भीष्म कुकरेती:.जब कबि आप सीण इ वाळ हवेल्या या सियाँ रैल्या अर चट चटाक से क्वी कविता लैन/विषय आदि मन मा ऐ जाओ त क्या करदवां ?
अतुल गुसाईँ- जन कि मिन मत्थी भी लेखी छौ कि मेरा सिरणा मूडी हमेशा पेन अर डायरी रैंद अर जब भी इनाना होंद त मि  चट चटाक वे लेखी देंदू.
भीष्म कुकरेती:. आप को को शब्दकोश अपण दगड रख्दां ?
अतुल गुसाईँ-ना जी इन क्वी शब्दकोश त नीच हालफिलाल.
भीष्म कुकरेती:.  हिंदी आलोचना तैं क्या बराबर बांचणा रौंदवां ?
अतुल गुसाईँ- जी हाँ , यु भी बहुत जरुरि च.
भीष्म कुकरेती:. गढवाळी समालोचना से बि आपको कवित्व पर फ़रक पोडद ?
अतुल गुसाईँ- जी पोडद च, बौत कुछ  सिखणा कु भी मिलदु अर प्रेरणा मिलदी.
भीष्म कुकरेती:.  भारत मा गैर हिंदी भाषाओं वर्तमान काव्य की जानकारी बान आप क्या करदवां ? या, आप यां से बेफिक्र रौंदवां
अतुल गुसाईँ- इंटरनेट कु उपयोग करदु.
भीष्म कुकरेती:.  अंग्रेजी मा वर्तमान काव्य की जानकारी बान क्या करदवां आप?
अतुल गुसाईँ-इंटरनेट कु उपयोग करदु
भीष्म कुकरेती:.  भैर देसूं गैर अंगरेजी क वर्तमान साहित्य की जानकारी क बान क्या करदवां ?
अतुल गुसाईँ- गुरु जी इथगा ज्यादा भी नि पढ़दू मी .
भीष्म कुकरेती:.  आपन बचपन मा को को वाद्य यंत्र बजैन ?
वाद्य यंत्र त नि बजैन पर तेल कु कनस्तर बजै छैच अर वेका बाद ढोलक
बजै छौ होली मा .