Sunday, December 31, 2017

क्य कन त....

लैंदी गौड़ी अगर भेळा लमड़ी जौ क्य कन त
दुःख मा अपणा लोग समणी नि रौ क्य कन त।।

फंड-बौनस यूॅ फर लगे की बुड्येंदां बेरोजगार हुयॉ छा
नौना पढ़े-लिखे की अगर लत्थी चोट मार क्य कन त।

रिटायरमेन्ट का बाद कुछ धर्यूॅ रौंद त काम आन्द
अब बीड़ी ठुड़ी टीपी-टीपी पेणा छां क्य कन त।।

ब्वारी भी ठिक छै बल यॉ सी पैली खुट्टा दबे देंदी छै
अब वा भी गौळ दबाणा खुण आणी क्य कन त।।

कैकू भी क्य ब्वन अपणो ही सट्ठी बूखो च।
अर ऊ बूखो भी पीनो-कल्चौणी काम नि आणू क्य कन त।

वीं ठिक छन जौकी औलाद नी रे भुला जाखी,
छैंद औलादा बाद भी रोण हुयूॅ क्य कन त।।



अतुल गुसाईं जाखी (सर्वाधिकरा सुरक्षित)

Thursday, December 21, 2017

फैदा क्य......

म्वर्ना बाद मुर्दा स्वर्ग जान्द कि नर्ग कै थै क्य पता
फिर शमसाण घाट तक रस्ता बणियां कु फैदा क्य।।

गौऊ का रस्तों मा सीमेन्ट लग्यॅू, मत्थी बटी मोळ घमयूॅ
जब मोळ मा ही हिटण लोळा त सीमन्ट लग्यॉ फैदा क्य।।

बरातीघर बण्यॉ गौऊ- गौऊ मा, बरात बैठीं ब्योली चौक मा
अर बराती घर भितर जुवरी, तस्यौर इन बरात घर कु फैदा क्या।।

बिजली पोल तार लग्यॉ छन गौऊ मा, झूला खेलणा छन बांदर
अर जब ऊ फर बिजली नि आण त तार लग्यॉ कु फैदा क्य।।

पाणी पाईप लाइन आई च दूर धार-खाळ बटी, पर पाणी नी
अर स्टेंट पोस्ट मा जग्वाळ बैठ्यॉ कुकर, इन पाईपलैना पैदा क्य।।

चकबंदी हुई सारियों का ओर-पोर, अर उज्याड़ जयां गोर
जब उज्याड़ ही खयेंण सरी सार, फिर चकबंदी कु फैदा क्य।।

बजट अयूॅ छौ खाळ बणणा कू, अर खाळ बण्यॉ धार मा
अर जब वख पाणी नि रूकण त खाळ बण्यॉ फैदा क्या।।
अतुल गुसाईं जाखी (सर्वाधिकरा सुरक्षित)



Friday, October 13, 2017

उटपटांग फैशन


लोग ब्वना छन कि कलयुग लग्यू च
पर कुछ नौनियों थै देखी मी लगणू
अरे अभी त!
आदिम युग चलणू च।।
हाथों मा न चूड़ी,
खुट्यों मा न पैजी,
माथा फर न बिन्दी,
नाक मा न फुल्ली,
न गलोबन्द, न बुलाक,
न तिलहरी न सीसफूला
गात पर-
न धोती न पढगो,
न कुर्ता न पैजमी,
न साड़ी न सुलार।।
कै थै क्वी शर्म न लाज
उटपटांग फैशन कु हुयूॅ नंगू नाच,
अर नंगी ह्वे की
कथगा सभ्य ह्वे गे समाज।
पर यूॅ थै क्य पता
कि यूॅका बाना कथगै दरजी
भूखी म्वर्ना छन आज।।
अतुल गुसाई जाखी


Thursday, July 27, 2017

सर्व शिक्षा अभियान कु बोल्ड लग्यूॅ छौ...

सर्व शिक्षा अभियान कु बोल्ड लग्यूॅ छौ
मिन इन झाणी यख शिक्षा बंटेणी च,
भितर देखी त वख, दाळ-भात खयेणी छै।।
मिन पूछी-
क्य बात च हेडमास्टर साब,
खूब घरात खलेणी च,
कै छ्वारा नामकरण च या
फिर कै मैडम कि बरात आणी च।।
हेडमास्टर-
अरे आवा-आवा गुसाॅई जी
दाळ-भात तुम भी खावा जी,
बल या त सर्व-शिक्षा च
सरकार की तरफाॅ बटी नौनू कु भिक्षा च।।
मिन बोली-
सरकार की तरफ बटी
नौनू कु भिक्षा यु ता ठीक च,
पर टेवल मा टंगड़ा पसारी बैठण,
कखकी शिक्षा च।।
हेडमास्टर-
याॅ मा मेरू क्य कसूर च
गाॅव मेरू बहुत दूर च,
आंद-आंद थकि जान्दू
याॅले आराम सी बैठी जान्दू।।

मि अपणा हि मन मा सुचणू रौ
कभी अफ थै त कभी मत्थी औळ थै कुसणू रौ,
हे माॅ या कन च तेरी लीला!
नौनू कु भविष्य ह्वे गे ठीला।।

तु अब भी मौन बैठीं छै
बीणा पकड़ी चुपचाप खड़ी छै,
अब त तेरू ही सारू च
हर नौना कू एक ही नारू च।।

Saturday, July 22, 2017

जांदरी घुमदी छै बल कबी..

जांदरी घुमदी छै बल कबी
गंज्यळी नचदी छै बल कबी
उरख्याली हैंसदी छै बल कबी
सुप्फा साज सुणाद छौ बल कबी
छफिरो गीत लगांद छौ बल कबी
नाज दनकुदो छौ बल कबी
देखी की-
कुठार खुस छौ बल कबी।
मरखी रे!
तिन सब मारे लिन।।


Friday, July 21, 2017

पहाड़ बटी मनखी.....

वे दिन जै दिन उ
वे दिन जै दिन उ
मी थै छोड़ी कि गै
कुड़ी देखदी रै
पंदेरू रूणू रै
बाटन बाड़ नि कैै
सुचणू रै पहाड!़
पहाड़ बटी मनखी
झणि कलै गै।


Friday, May 26, 2017

मास्टरों का हाल

सर्व शिक्षा अभियान कु बोल्ड लग्यूॅ छौ
मिन इन झाणी यख शिक्षा बंटेणी च,
भितर देखी त वख, दाळ-भात खयेणी छै।।
मिन पूछी-
क्य बात च हेडमास्टर साब,
खूब घरात खलेणी च,
कै छ्वारा नामकरण च या
फिर कै मैडम कि बरात आणी च।।
हेडमास्टर-
अरे आवा-आवा गुसाॅई जी
दाळ-भात तुम भी खावा जी,
बल लाटा या त सर्व-शिक्षा च
सरकार की तरफाॅ बटी नौनू कु भिक्षा च।।
मिन बोली-
सरकार की तरफ बटी
नौनू कु भिक्षा यु ता ठीक च,
पर टेवल मा टंगड़ा पसारी बैठण,
कखकी शिक्षा च।।
हेडमास्टर-
याॅ मा मेरू क्य कसूर च
गाॅव मेरू बहुत दूर च,
आंद-आंद थकि जान्दू
याॅले आराम सी बैठी जान्दू।।

मि अपणा हि मन मा सुचणू रौ
कभी अफ थै त कभी मत्थी औळ थै कुसणू रौ,
हे माॅ या कन च तेरी लीला!
नौनू कु भविश्य ह्वे गे ठीला।।

तु अब भी मौन बैठीं छै
बीणा पकड़ी चुपचाप खड़ी छै,
अब त तेरू ही सारू च
हर नौना कू एक ही नारू च।।

Tuesday, May 9, 2017

इन जिन्दगी त मी नि चैणी.....

जैंई जिन्दगी मा
रस, छंद, अलंकार न हो,
जैंई जिन्दगी मा
अपणी भाषा,
अपणी संस्कृति,
अपणा रीत रिवाज न हो,
पैरणा खुण जख
दुफड़की ट्वपली, काळी फतगी
गात न हो,
खाणा कु जख कोदू, झगोरू
छंच्य भात न हो,
जैंई जिन्दगी मा नचणा कू
ढोल, दमौं मसका बाज न हो
दान बुड्यों की कछड़ी मा
जख हुक्का साज न हो,
न भुलों न, कतै न
इन जिन्दगी त मी नि चैणी।।
अतुल गुसाईं जाखी (सर्वाधिकरा सुरक्षित)

Friday, April 21, 2017

आज बादळ ....

आज बादळ
पहाड़ो मुण्ड मलसणो ऐन
देखी की सरग रूण बटी गै,
गाड, गदिरा आसूॅ बगाण बटि गैन।
अर म्यार सरेल ठण्डू होयूं च।
अतुल गुसाईं जाखी (सर्वाधिकरा सुरक्षित)

Wednesday, April 12, 2017

त्वे कैन सिखे कविता लिखण?

दुख ऐनी खैरी दगड़
खैर सिखे गै मी कविता लिखण
गौं बटी खुद आई बाडुळी दगड़
बाडुळी सिखे गै मी कविता लिखण।
खुद मा कभी आॅसू छुटिन अर स्याई बणिन
वा आॅसू कि स्याई सिखे गै मी कविता लिखण।
और कु सिखे गै त्वे कविता लिखण?
घस्येरियों दगड़ एक बांद देखी छै
वींकि दाथुड़ी  सिखे गै मी कविता लिखण।
कुछ दिन माया लगै गे, फिर छोडी गै दोष लगै की
वींका घौ अर दोष सिखै गिन मी कविता लिखण।
और कु सिखे गै त्वे कविता लिखण?
मेरी गरीबी सिखे गै मी कविता लिखण
शहरों कि वा भीड़ ज्वा हैंसणी छै मी फर
व भीड सिखे गै मी कविता लिखण।
खैरी का बाटों मा चलदा -चलदा
चुभदा गारा सिखे गिन मी कविता लिखण।।
अतुल गुसाईं जाखी सर्वाधिकार सुरक्षित

Tuesday, April 11, 2017

कै-कै जि मनो मी।

एक तू ही नि छै
जु नाराज च मी सै
पौन नाराज  च
पंछी नाराज छन
पहाड़ नाराज च।
गौं नाराज च
गैल्या नाराज छन
गौडी-भैसी नाराज छन।
देळी नाराज च
द्यू नाराज च
देवता नाराज छन।

सगोड़ी नाराज छन
सेरा नाराज छन
सदनी सबी नाराज ही रैन
पर
सबौ से दूर रै की
कै-कै जि मनो मी।
अतुल गुसाईं जाखी सर्वाधिकार सुरक्षित

Monday, April 10, 2017

प्रेम रस लिखणा कु माया जरूरी च।

तेरा दिल मा माया कि बिज्वाण जमेनि साकू मि।
तेरा जिकुडा कु, माया कु माली बणी नि साकू मि।।
लोग पुछनिद रे अतुल !
तु प्रेम रस कि कबिता कलै नि लिखदी
अपणी अद्धखिचरी माया सुणे नि साकू मी।।
अतुल गुसाईं जाखी (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Friday, April 7, 2017

च्यो जरूरी च...

हमरा चैका पगार रौड़
अर पगार खित हैंसी
मिन बोली!
मेरी पाॅच लाखे कूड़ी घाम लागे छै
अर तु हॅसणी छै।
बल-
कूड़ी इथगा ही फिकर रैन्दी त
पाॅच लाख वे फर लगैन
त द्वी लाख मी फर भी लगेदेन्दी।।
अतुल गुसाईं जाखी( सर्वाधिकार सुरक्षित)

Thursday, April 6, 2017

डाॅक्टर अगर भगवान कु रूप च त फिर डाॅक्टर देवभूमी मा कलै नि रैन्दिन ?

डाॅक्टर अगर भगवान कु रूप च त फिर डाॅक्टर देवभूमी मा कलै नि रैन्दिन ?
______________________________________________
कुछ दिन पैली कफग मा एक चुटकला पढ़णू छौ- कुछ लोग राम नाम सत्य बोली की एक मुर्दा थै बजारा का रस्ता मडघाट लिजाणा छा, बजार मा द्वी डाॅक्टर च्या दुकान मा च्या पीणा छा जनी जनाजा बजारा मा पौछी त डाॅक्टर साबन पूछी कि लाला जी आज कु मोरी, लालाजीन बोली कि फलणा गौ कु फजितु मोरी गे रै होलू 40,45 साल कु।
अब एक डाॅक्टर हैका डाॅक्टर का कनूड मा ब्वनू च कि यार डाॅक्टर साब ऐ  फजितु तै दवे क्या तिल दीन! बल न यार मिल त नि दीना, बल फिर तिन दीन क्या? बल ना यार मिल भी नि दीना। बल जब तिल भि नि द,े मिल भी नि दे, त यु बजार मा तिसरो डाॅक्टर कु एै।
ब्वनो कु मतलब यु च कि कुछ त हम देवभूमी का लोग यूंका होण से म्वना छा अर कुछ यूंका नि होण से।  हमर पहाड़ मा अधिक्तर फर्जी डाॅक्टर छन जु अतिरी-बितरी कु काम एै जन्दिन पर यूं थै ज्यादा जानकारी नि होण से यु हमरू काम-तमाम भी कैरी देन्दिन। कै थै अगर जुखाम लगणू रैन्द त यु पुटगा पीणा कि दवे दे देन्दिन। कैकु अगर सुल्टु हाथ टुटी गै त यु उल्टा हाथ फर पलस्तर कैरी देन्दिन। वेका बाद दवे फर दवे खाणा का बाद हम पौछी जांदा सीधा मड़घाट। पर दिक्कत या च कि अगर फर्जी डाॅक्टर मा नि जाण त जाण कख च, अच्छा प्राईवेट अस्पलाळ हमरा यख छौ नि छन अर सरकरी मा डाॅक्टर एक मैना सि ज्यादा टिकेन्दु नि च। अर डाॅक्टर टिकेन्दू इलै नी चा कि डाॅक्टर अधिक्तर भैरा महानगरों का रैण ओळ रैन्दिन वै थै सिर्फ पैसा कमाण से मतलब च जु कि उ पहाड़ मा रै कि नि कमै सकद। मि सबों कु नि बोली सकदू पर मुख्य  कारण यु ही च। दुसरों कारण वे थै हमरी भाषा समझ मा नि आंदी यु भी मुख्य कारण च, ज्वान रोजगारा बाना महानगरों मा छन गौं मा दान-दान आदिम छन अर वीं बिमार होन्दिन। उ दगड़ दिक्कत या च कि अगर क्वी बिमार होंद त उ पैली डाॅक्टर मा नि दिखान्द उ सोचद कि पित्र दोष लग्याॅ होला, हमरू देवता दोष लग्याॅ होला, 10-15 दिन उच्यणू धरदा-धरदा कटे जन्दिन अर जब बिमरी ज्यादा बडी जान्दी तब जैकी डाॅक्टर मा जन्दिन। डाॅक्टर मा जै की डाॅक्टर पुछद माता जी, बाबा जी क्या हो रहा है? त वख मा भाषा कि समस्या खडी ह्वे जांद, माता जी भी अपणी ही बोली मा बबा धपाग होणी चा, चसग भी जाणा छन अर स्वास भी फुलणू च अर बै हौण फरकी नि सकणू छौ। डाॅक्टर इथगा ही सूणी की परेशान ह्वे जांद कि यार इन मेसी बिमरी त किताब मा पौढ़ी नि छौ न कखी सूणी या नै बिमरी कख बटी एै! फिर वे विचरा मा भी एक ही रस्ता रान्द जथगा जल्दी ह्वे साकू यख बटी भगण मा ही फैदा च। इलै मिन सुरू मा लेखी छौ कुछ त हम यूंका होण से म्वना छा कुछ नि होण से।
अतुल गुसाई जाखी (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Tuesday, April 4, 2017

गुठ्यार

एक गुठ्यार भितर
गौड़ी/भैंसी/बखरी/खाडू
सब अलग-अलग जाती का
स्वार-भै सी लगदिन,
एक पूळौ घास
आपस मा मिली जुली की खान्दिन।
अर हैंका गुठ्यार भितर
हिन्दू/मुसलिम/सिख/इसाई
पर रोज होन्दिन!
गाळी-गलोच/ओछी-आलोचना
धर्म का नौ फर विवाद
दंगा-फसाद
दिखेणा खुण यु मनखी छन
पर जानवरों जन छन
सिंगसार, लत्याड़,
एक-हैंका खुण डुंगरताळ
कमजोरा खुण भटकताळ
कैर देन्दिन लम्पसार।।
अतुल गुसाई जाखी (सर्वाधिकार सुरक्षित)
8802374472


Sunday, April 2, 2017

उत्तराखण्ड तै सरकार न बल्की दरोळा चलाणा छन।


दारू पीण अधिकार च हमारू
अर पिलाण फर्ज च तुमारू।
.......................
उत्तराखण्ड का तीन जिला उत्तरकाशी, चलोली व रूद्रप्रयाग मा दारू बन्द होण से काफी दुख ह्वे आप लोगों कु दुख मि दिल से महसूस करणू छौ, आखिर हम भी त वीं ब्रांड पिन्दां , जै तै तुम पेंदा छा। ये दुख का घड़ी मा हम अन्य जिलों का दरोळा भै आप सभी लोगों का दगड़ी छा। मि आप लोगों का वास्ता सिर्फ इथगा कौरी सकदू छौ कि जब भी आप लोगों कु दिल दारू पेणा कु करलू त पौडी का पाबौ बजार मा आप लोगों कु स्वागत च।
आज उत्तराखण्ड का तीन जिलों मा दारू बंद ह्वे गे, भोळ सरकार पूरा उत्तराखण्ड मा कौरी द्यार्ली इं बाता कु मी थै काफी चिन्ता च। ये सै पैली कि दारू बन्द हो हम थै कुछ न कुछ करण ही पडलू। आखिर सरकार भी त हम दरोळा ही बणादां फिर चाहे काॅग्रेस कि हो या बीजेपी की या कै अन्य पार्टी की हर सरकार हमुन ही त बणें। हम ही सरकार बणांदा अर हम ही फर अत्याचार यु घोर अन्याय च, हम दरोळों दगण। येकू विरोध होण चैंद। जब नसबंदी कु विरोध ह्वे सकद, नोटबंदी कु विरोध ह्वे सकद, मीटबंदी कु विरोध ह्वे सकद त दारूबंदी कु कलै ना ?

अर सरकार क्या समझदी अफ थै, सरकार तोप चा क्या ?
----------------------------------------
अरे सरकार से ज्यादा काम त हम दरोळा करदां आम जनता की। उत्तराण्ड मा द्वी-चार लोग जु बच्याॅ छन ना ऊ हम दरोळों का बचायाॅ छन, सरकार का भरोसा रैन्दा त ऊ भी कबी पलायन ह्वे जांद।
इन नि समझ्यां कि यु अतुल जाखी खयां-पियां मा ब्वनू च अगर सरकार थै यकीन नि आणू त जरा बिना दारू का कैकू परखुम्मा लगे की दिखे द्या, हौळा कु ठ्यका ले की दिखे द्या, चार आदिम जरा कैका ब्यो मा बुलै कि दिखे द्या, पंचैत काम निभै कि दिखे द्या, कैकी पुजै कौरी कै दिखे द्या। इथगा ही ना बिना दारू का जरा मुर्दा मडघाट तक पौछै कि दिखे द्या। तुम नेता लोग एक वोट का खातिर हजारों वादा करदां अर जितणा का बाद काम कुछ ना। सिर्फ अपणी मवसी बणादां तुम से ठिक त हम छा हम द्वी पैक लगे कि अपणी मवसी डंाग मा धरदां पर दुसरों का काम एै जान्दां।
................................
हम अपणी ही किडनी, कज्याण घपल्याणा छां
कैका बुबा कु कुछ थोडी नि खाणा छां ।।
................................
हम ये देश का सच्चा समाज सेवक छा । क्या आप लोगों थै पता च हम दरोळों का घौर मा खाणा कु राशन पाणी कुछ नि रैंद, बच्चों थै फीस देणा कु पैसा नि रैंदिन, नौनी कु ब्यो कन क्वे करण यु हम थै पता नी च । हम दरोळा बजार बटी घौर आंद छां कि नि आंदा , घौर वोळों थै यांकी फिकर सताणी रैन्द, फिर भी आप लोंगो का सुख दुःख मा हम हमेशा खडा रैन्दा। आप लोगों का सुख-दुःख मा क्वी औ नि औ पर हम दरोळा हमेशा समय सी पैली पौंछी जान्दा। अर आज तुम ब्वना छा कि दारू बन्द करा।
यु जु उत्तराखण्ड चलणू च ना उ दारू चलाणू च दरोळा चलाणा छन। सरकार थै अपणा दिमाक भीतर या बात घुसै देण चैंद! उत्तराखण्ड तै
सरकार न बल्की दरोळा चलाणा छन।
अतुल गुसाई जाखी (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Thursday, March 30, 2017

क्या ब्वन तब!


मिन
अपणा बुबा जी थै पूछी
कि बाबा तुमन पौढ़ी
किलै नीच?
बाबन बोली!
ब्यटा घौर मा
खाणा कु कुछ नि छौ
बचपन कमाण मा गुजरी गै
अर  ज्वनी त्वै पढ़ाण मा।
मिन
अपणा ब्यटा थै पूछी
तु पढै किलै नि करदी बे?
बल! पापा-
स्कूल मा
मिड-डे-मील खै की
पोटगी भुरे जान्द
अर
फिर निन्द ऐ जान्द।
अतुल गुसाई जाखी (सर्वाधिकार सुरक्षित)

भानुमती पाबौ बजार अबी तक कलै नि आई?


द्वी बिसी से ज्यादा समय ह्वे गे, एका बीच कई बांद, छोरी, स्याळी ऐ के चली भी गैन कथगों कु ब्यो ह्वे गे, कथगों का बाल बच्चा ह्वे गिन अर कथगे ता रण्डे भी गैन। पर भानुमती अबी तक पाबौ बजार नि ऐ। एक बीच बड़ी कु बंडल 15 रूप्या कु ह्वे गे, कुर्ता सुलार का जगा अब लोग अपणी गर्लफ्रेड थै जींस टौप देणा छन क्वी अब गढ़वाल मण्डल बस कु इंतजार नि करणा छन अपणी बाइक मा अपणी गर्लफ्रेड थै घुमाणा छन। सब कुछ बदले गे हाॅ सिर्फ एक चीज नि बदले उ च पाबौ बजार फिर भी भानुमती अबी तक नि आई।
कुछ सबाल छन जु मी थै सुचणा कु मजबूर करदिन आखिर भानुमती कु प्रेमी भानुमती थै पाबौ बजार ही कलै बुलाणू छौ जब कि वख मा बैठणा कु कखी थीक से जगा भी नी च। पैठणी बजार भी बुलै सकदा छा चाकीसैण तरपालीसैण या फिर सीधा पौडी बुलांदा, पाबौ ही कलै वख ता झांजी भी दुनियांभरा का, दुसरो सवाल मन मा उठद की उपहार मा कुर्ता सुलार किलै अगर अंगूठी देण कु करार होन्द त शायद भानुमती ऐ भी जान्दी या भौत बड़ी गलती छै। खैर जु ह्वे सु ह्वे मि त इलै लिखणू छौ कि भोळ अगर हमरा नाती नतेणा पुछला कि दादा भानुमती पाबौ बजार किलै नि एै त हमन क्या जवाब देण।।
अतुल गुसांई जाखी

जगजीत सिंह की गजल तुम इतना जा मुस्करा रहे हो का गढ़वाली अनुवाद..

जगजीत सिंह की गजल तुम इतना जा मुस्करा रहे हो का गढ़वाली अनुवाद
तु इथगा कलै मुल-मुल हॅसणी छै
क्या खैरी च जै लुकाणी छै।।

आॅखों मा खैरी हैंस होंठो मा
क्या हाल छन अर क्या दिखाणी छै।
क्या गम च जै...

बणी जाला बिस पींदा पींदा
यु आॅसू जु तु पिन्दी जाणी छै।
क्या गम च जै...

रेखाओं कु खेल च मुकदर
कलै रेखाओं सी मार खाणी छौ।
क्या गम च जै...

अतुल गुसांई जाखी

गीत -भैजी का ब्यो मा...


भैजी का ब्यो मा पौणे नाच
मिन त करण घर्या नाच
देशी भैजी तेरू देशी नाच
यख नि चलण सोच ले आज
यख नि चलण बींगी ले आज।


ढोल्या काका जरा तचो ढोल
औवजी का जरा तचो ढोल
बारह कसणी कसके दे
ढोल दमो मा नचे दे।

मसगा भैज तेरू मसकबीन
सकगा दिदा तेरू मशकबीन
बजे दे खुद लगीं, सुणे दे खुद लगीं।
बारह मैनों का बारह रीत
बजे दे माया का गीत।
भैजी का ब्यो मा ...

रंग मयळी या मेहंदी रात
मेहन्दी लगाण मिन भी हाथ
सुण रे दिदा मेरी बात
टिकुली बिन्दुली मिल मुलाण
मिन भी अफकू ब्योली खुज्याण।
भैजी का ब्यो मा ...

गेडू दाळी कू बारी भात
लरक तरक ह्वे गे गात
बामण बोडा को जसिलो हाथ
रस्याण आई पौणे भात
रस्याण आई पौणे भात

सर्वाधिकार सुरक्षित, अतुल गुसाई जाखी