Wednesday, May 23, 2018

मगरों मा पाणी नी....

मगरों मा पाणी नी
नवोळा सूखी गैनी
काटी की डाळी बोटी
खेती-बाड़ी रौड़ी गैनी।।

डाॅड्यों मा अंयार नी
कांठियों मा बुरान्स नी
काटी की डाळी-बोटी
खाली धार टरकणा छन।।

रौला-गदिना औन्दा नी
छोया दुळौ फुटदा नी
बसग्याळ अब लगदू नी
कुयेड़ी अब चलदी नी।।

बिन पाणी फूल खिलदा नी
पुंगड़ो नाज हूणू नी
काटी की डाळी बोटी
खेती-पाती बांजा छन।।

पहाड़ ह्वे गे निरपाणी
सिमार कखी बड्दू नी
काटी की डाळी बोटी
फुलंगो अब फुल्दो नी।।

पौन अब चलदू नी
छैलू कखी दिखेन्दू नी
काटी की डाळी बोटी
बटोई चैरी बैठदू नी।।

हैरू घास जमदो नी
फ्यूंली पाखों खिलदी नी
लगे की बणों मा आग
गौड़ी-भैसी रमणा छन।।

काग अब करांदू नी
घुघती कखी घुरान्दी नी
लगे की बणों मा आग
चखुलों का घोल हरची गिन।।

काटी की डाळी बोटी
ढ़ौडा-धारा रौड़ी गैनी
लगे की बणों मा आग
खेन्दुड़ा-चखुला दौड़ी गैनी।।

फिर भी विणास कनू
वणों कू हरास कनू
काटी की डाळी बोटी
मनखी अपणो ही नाष कनू।।
अतुल गुसाईं जाखी (सर्वाधिकार सुरक्षित)