Thursday, October 4, 2018

वा घस्यारी...

व घस्यारी नि दिखेन्द
अब डॉडि-काठ्यूॅ मा,
उकाळ,उंदार, बाटा-घाटों मा,
ज्वा!
छुणक्याळी दाथुड़ी
ले कि आन्दी छै, बणों मा।।
अर्बी घास कटदी छै,
अर गीत लगान्दी छै
ज्वा चाठौं- पाखों मा।।
शायद वींकि-
दाथुड़ी ख्वींडि ह्वे गै होली,
या दाथुड़ी हरची गै होली,
या फिर-
वींन गोर-भैसा बिकैयाली होला
या फिर वा-
दूर चली गै होली परदेश
अपणा स्वामी का संग मा।।
सुचणू च पतरौळ
बांजा हुयां छन,
छन, मरूड़ी, गौऊ खोळ,
यखुली-यखुली भटकणू च,
बणों मा आज पतरौळ ।।
अतुल गुसाईं जाखी (सर्वाधिकार सुरक्षित)