मेरी
किसी राजनेता या किसी पार्टी से जाती दुश्मनी नहीं है, यह
कविता मेरा सिर्फ दर्द मात्र है इसे अन्यथा ना ले। इस से पहले भी मैंने कई
राजनीतिक व्यंग लिखे,
कई
लोगों कू बुरा लगा, कई लोगों ने डराने धमकाने की कोशिस भी की, मैं
उन भाईयों को सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ की मैंने आज तक जो भी लिखा, उसे
मैंने आप ही लोगो से सुना, समाचार पत्र-पत्रीकाओ मे पढ़ा
और उन्ही बातों को सिर्फ मैंने अपने शब्दों मे बयां किया है....फिर भी किसी को
बुरा लगे तो माफी चाहता हूँ ...और लिखने के लिए मुझे कोई रोक नहीं सकता क्यूँ की
मैं भी आजाद देश का स्वतंत्र नागरिक हूँ। खैर बातें तो होती रहेंगी...हाल फिलाल
प्रस्तुत रचना उत्तराखंड ग्वाया लगाणू का आनंद ले।
उत्तराखंड
ग्वाया लगाणू।
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बोला
हर दा यू क्या च हूँणू
यू
उत्तराखंड क्यां कु रुणू ,
कैले
क्वी येका आंशू नि फुंजणु
कैले
क्वी ये नि बुथाणू ,
14
साल कु ह्वे गे उत्तराखंड
कैले
यू आज भी ग्वाया लगाणू।
कोच
येकी ब्वे, कख च येकू बुबा,
कले
च यू भूका कु चिल्लाणू,
हर
पाँच साल मा उन
द्वि-द्वी
आन्दा तुम,
फिर
कले च यू आज भी
छोरा
– छपिरा सी जिंदगी बिताणू।
कोच उ, जु
येकू आँखा घुराणू,
अनाथ
सी समझी येतै लत्याणू,
तुम
बुना की सब ठीक ठाक चलणू,
फिर
कले नीच यू अपणा,
हाथ
खुट्टा हिलाणू।
बोला
हर दा कुछ त बोला,
14
साल बाद भी कले च यू,
ग्वाया
लगाणू।।
अतुल गुसाईं (सर्वाधिकार सुरक्षित)
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