Atul Gusain jakhi
Friday, July 21, 2017
पहाड़ बटी मनखी.....
वे दिन जै दिन उ
वे दिन जै दिन उ
मी थै छोड़ी कि गै
कुड़ी देखदी रै
पंदेरू रूणू रै
बाटन बाड़ नि कैै
सुचणू रै पहाड!़
पहाड़ बटी मनखी
झणि कलै गै।
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