प्रधनी बौ द्वी मैना मा माला माल ह्वे गे,
सोना इथगा सस्तू भी नि ह्वे...
नाका की फुल्ली ज्वान, बुलाक ह्वे गे।।
ब्याली तक दिन कटेणा छा सीला वोबरी।
माटा कुड़ी आज लैन्टरदार ह्वे गे।
ब्याली तक गलणों फर छाया पुणीं छै,
आज बौ लाल चचग्वार ह्वे गे।
परसी ई बात फर गाऊ मा बबाल ह्वे गे।
ये अतुलल जरसी क्य बोली कि
मेरु कपाळ लाल ह्वे गे।
सर्वाधिकार सुरक्षित(अतुल गुसाईं)
आज भुला तेरी लेखणी कु कमाल देखी अर दंग रैग्यूं। बहुत सुन्दर, लिखदा रैंयां।
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