लैंदी गौड़ी अगर भेळा लमड़ी जौ क्य कन त
दुःख मा अपणा लोग समणी नि रौ क्य कन त।।
फंड-बौनस यूॅ फर लगे की बुड्येंदां बेरोजगार हुयॉ छा
नौना पढ़े-लिखे की अगर लत्थी चोट मार क्य कन त।
रिटायरमेन्ट का बाद कुछ धर्यूॅ रौंद त काम आन्द
अब बीड़ी ठुड़ी टीपी-टीपी पेणा छां क्य कन त।।
ब्वारी भी ठिक छै बल यॉ सी पैली खुट्टा दबे देंदी छै
अब वा भी गौळ दबाणा खुण आणी क्य कन त।।
कैकू भी क्य ब्वन अपणो ही सट्ठी बूखो च।
अर ऊ बूखो भी पीनो-कल्चौणी काम नि आणू क्य कन त।
वीं ठिक छन जौकी औलाद नी रे भुला जाखी,
छैंद औलादा बाद भी रोण हुयूॅ क्य कन त।।
अतुल गुसाईं जाखी (सर्वाधिकरा सुरक्षित)