Friday, December 6, 2019

टूटी चप्पल !

टूटी चप्पल !
मैं लिख सकता हूँ
उस टूटी चप्पल की कहानी
जो यथार्थ है
जो स्कूल जाते वक्त चौदह बार निकल जाती थी
बैलों के पीछे भागते तो हाथ में लेनी पड़ती थी
जिसके और टूटने की डर से मैने क्रिकेट नहीं खेला
सब दौड़ते-भागते और मैं भी हंस लेता
दगड़ियों की जिद पर
नंगे पैर खेलता फिर कोई बहाना सूझ ही जाता
रोज शाम घर के नजदीक फिर चप्पल तोड़ देता
इस उम्मीद में कि पिताजी देखकर नयी ले आयें।
© महेन्द्र सिंह राणा 'आजाद'