Wednesday, April 30, 2014

हाई हेलो फेसबुक मा मिल्दिन सब।।



न पदनौ चौक मा
न पन्चैत चौक मा।
न पदान बोड़ा धोरा,
न कैका घौरा।
न ब्यो न गत मा
न स्कूल का छत मा।
न चक्की न घट मा
न कखी ग्वेर बट मा।
न खरक न गोठ मा
न देवतों कटदा रोट मा।
न बूण न जंगळौ मा,
न कभी हौळा दन्दोळौ मा।
न पंदेरा न नगोळौ मा,
न कखडी चुना कु ठंगुरु मा।
मेरा गाऊ मा क्वी नि दिख्यांद अब,
हाई हेलो फेसबुक मा मिल्दिन सब।।
©अतुल जाखी ( सर्वाधिकार सुरक्षित )

Tuesday, April 29, 2014

Paanch Kavita








देवता नचै डौंर थाळी।

देवता नचै डौंर थाळी। मेरा मैता की झाली माली ।। गश भी गाडी मिन ब्याली। जेब हुयीं खाली खाली।। छौळ पूजी,अन्खार खाडू दियाली। सुख चैन और भी खोयाली।। समझ मा आई गै भुला अब। बक्या, बमाण जगरी सब जाळी।। अंधविश्वास मा नचणू उत्तराखंड । ख़त्म ह्वे गे पेंसल, जिन्दगी कु फंड। copy, paste वाले सावधान,।

खूब चले तुमन सरकार बहुगुणा जी।

खूब चले तुमन सरकार बहुगुणा जी।
आपदा खाई की नमस्कार बहुगुणा जी।

लोग मुना रैन, लुक्यां रैन उड्यार बहुगुणा जी।
सिर्फ अपणा भुरिन तुमन घार बहुगुणा जी।।

हमकू भिजिनी तुमन फटियां सुलार बहुगुणा जी।
अर अपणा गौलाउन्द रुप्यों कु हार बहुगुणा जी।

भुखी मुनि रैई जनता बद्रिनाथ, केदारनाथ।
तुम लेणा रै देहरादूण मा डंकार बहुगुणा जी।

पाणी मा देखी हमुन खून की नयार बहुगुणा जी।
अर तख चलणी रै बल शराब बहुगुणा जी।

करी घोटाल इस्थीपा देणा खूब च रिवाज बहुगुणा जी।
पर क्यकन वक्त तुमरो ही च आज बहुगुणा जी।

नेगी जी का गीत कुराण छन भुला।

नेगी जी का गीत कुराण छन भुला। ये गढ़भूमी पहाड़ मा पुराण छन भुला।। नेगी जी का गीत रुवांद छन भुला। देश बटी देवभूमि मा बुलांद छन भुला।। नेगी जी का गीत हमरी संस्कृती बचांद छन भुला नेगी जी का गीत भ्रष्ट नेतावों हिलांद छन भुला। नेगी जी का गीत पहाड़े रिवाज-रीत छन भुला नेगीजी का गीत तेरा भी मेरा भी मीत छन भुला। नि ह्वे सकद क्वी गढ़रत्न नेगी जी जन। ह्वे भी जालू त ऊ नेगी जी का छींट छन भुला। ( सर्वाधिकार सुरक्षित )

होली त आई गे पर

होली त आई गे पर हुल्यार हरची गिन, गीत होली का अर ढोलकीदार हरची गिन। झण्डा पकडी अगने अगने मी भी गई छौ कभी, ऊ लाल रंग कु टिका अर ऊ टिकादार हरची गिन। ऊ चौंळू कु झोला मिल भी बोकी छौ कभी वा राती की भूख़ अर ऊ खीचडी का यार हरची गिन।। कख हरची होलू बचपन कु अतुल गुसाई अर कख हरची होली 10 पैसा देण वोली माई।।

मुरण से पैली कैन एक च्या गिलास तक नि पूछी।

मुरण से पैली कैन एक च्या गिलास तक नि पूछी। मुरणा का बाद चाई पत्ती, चिन्नी ले के आणा छन लोग।। मुरण सी पैली द्वी गफ्फा अन्ना का प्यार से नि मिलिन। मुरणा का बाद मेरा बांटे चुंची डांग मा धना छन लोग। मुरण सी पैली कैन कभी हल्दी ज्यूँदाल नि लगे माथा मुरणा का बाद खान्द फर पित्र पिठै लगाणा छन लोग। मुरण से पैली क्वी मेरा हाल पुछण तक नि आई कभी मुरणा का बाद बुले बुले की मी थै भूत नचाणा छन लोग। मुरण सी पैली ये अतुल जाखिल कैकु बलु बुरु नि बोली। मुरणा का बाद पित्र दोष लग्यू बल, छुई लगाणा छन लोग।। जब बच्यू छौ, ज्यून्दू छौ सबोन नफरत ही कौरी। मुरणा का बाद फेसबुक फर भी like कना छन लोग। ©अतुल जाखी ( सर्वाधिकार सुरक्षित )