Thursday, October 8, 2015

राहू रैंद राठ मेरा माट मा

“राहू रैंद राठ मेरा माट मा” वेसे तो ये मेरी काफी पुरानी रचना है जिसे आप लोगों का काफी प्यार मिला खास कर मेरे राठी भाईयों का और मिलता भी क्यूँ नहीं, क्यूँ कि पूरे उत्तर भारत में राहू का सिर्फ एक मात्र मंदिर जो कि मेरे राठ में है, इसी की छत्र छाया में हम रहते है और राहू के नाम से ही हम लोगों को राठी माना जाता है, और राठी कह कर बुलाया जाता है. इस कविता को लिखने का मेरा प्रयास सिर्फ राहू मँदिर का प्रचार प्रसार करना था और इस बार मेरा साथ दिया मेरे छोटे भाई पंकज नौडियाल ने जिन्होंने मेरी इस कविता को अपनी आवाज देकर लोगों तक पहुंचाने काम किया है. मैं धन्यबाद अदा करना चाहूँगा पंकज भाई का और साथ में उन भाईयों का जो राहू देव को मानते है—गीत का आंनद ले राहू रैंद राठ मेरा माट मा ......
धन्यबाद!!
अतुल गुसाईं
https://www.youtube.com/watch?v=RgH6jhWuUMc&feature=youtu.be

Wednesday, September 30, 2015

मेरु रौतेलु मुल्क

बहुत जल्द आप के सामने होगी  मेरु रौतेलु मुल्क

Monday, September 14, 2015

चल रामी घौर


मेरी एक रचना (चल रामी घौर) प्रेम सिंह गुसाई व मीना राणा की आवाज में सुनने के लिए click करें.........
https://www.youtube.com/watch?v=objMUG8WcKg&feature=youtu.be

Wednesday, June 17, 2015

आखिर क्या क्या नि बिकणू बजार मा,

आखिर क्या क्या नि बिकणू बजार मा,
मर्द ह्वे की भी मर्द,
मर्द होणा की दवे खुज्याणू बजार मा।
आखिर क्या क्या नि बिकणू बजार मा,
तेरी स्या कज्याण क्या कु लिई,
भाई साब ! जु तू जिस्म खुज्याणी बजार मा।
अपणी घारा की बेटी ब्वारी तुमरी टुप लुकाई,
दूसरों बेटी ब्वारी की इज्जत बिकाणा तुम बजार मा।
आखिर क्या क्या नि बिकणू बजार मा,
बांज, बुरान्स, गंगा, यमुना कु देश छोड़ी की,
हवा पाणी खुज्याणी तू बजार मा,
सारी उम्र तु बालब्रह्म चारी बणी रई
बुड़ेन्दा स्याणी खुज्याणी छै तु बजार मा।
आखिर क्या क्या नि बिकणू बजार मा,
कभी कभार त मी खित हैंस आंदी
जब मी सुणदो....................
नेता, पुलिस सरकरी कर्मचारी
सब बिकणा छन बजार मा,
अर भगवान मत्थी बटी बोनू रौन्द
यू त नर छन,
हम भी त बिकणा छा बजार मा।
सर्वाधिकार सुरक्षित, अतुल गुसाई जाखी

Sunday, May 24, 2015

हिमालय हिंवाल का अजय कोठियाल छा तुम

हिमालय हिंवाल का अजय कोठियाल छा तुम
मनखी बाड़ा महान छा तुम.
रामा लछ्मण का तीर छा तुम
मेरा भारत माँ क वीर छा तुम
ये गढ़भूमि धाती का सपूत छा तुम,
बाबा केदार का दूत छा तुम.
गरीबों का मसीह, ऊंकी आश छा तुम,
दीन- दुखियों की साँस छा तुम.
माउण्ट एवरेस्ट विजेयता, पहाड़ छा तुम,
शेर-ए- हिन्दु, सिंह की दहाड़ छा तुम.
दुश्मनों कू बीच सैण मा भ्याल छा तुम,
उत्तराखंड गौरव वीर कोठियाल छा तुम.
कीर्तिचक्र, शौर्यचक्र उत्तराखंड गौरव सम्मान छा तुम,
मनखी बाड़ा महान छा तुम.
अतुल गुसाईं जाखी (सर्वाधिकार सुरक्षित)

दिनांक २५.५.२०१५

Friday, May 22, 2015

नशा

मिन कच्ची भी पे,
मिन पक्की भी पे,
मिन देशी भी पे,
मिन विदेशी भी पे,
मिन फौजी की रम भी पे,
मिन गोरख्याणियों  की छंग भी पे,
बैठि की जोगी बाबा
मिन सुल्फा भंग भी पे,
पर कसम से........
जु नशा विंकि आंख्यों मा छौ
ऊ कखी नि रै
अतुल गुसाईं जाखी (सर्वाधिकार सुरक्षित)








Wednesday, April 15, 2015

तै निर्भय परदेशों नि जावा

तै निर्भय परदेशों नि जावा
.....................................
गढ़वाली भै बन्धों यखी रावा,
स्ये निर्भय परदेशों नि जावा,
तै निर्भय परदेशों नि जावा॥
हौल लगावा गोर चरावा
चकबंदी कारा खेती बचवा,
चकबंदी कारा खेती बचवा,
सगोड़ी- पतोडियों बिज्वाड़ जमावा
सेरा – डोखरों अन उगावा,
डाली लगावा फल बिकावा,
चकबंदी कारा खेती बचावा,
स्ये निर्भय परदेशों नि जावा।।
बख़रा ल्यावा, ढिबरा चरावा,
ऊन गाडा, ताकुलो रिंगावा,
चकबंदी कारा घास बचावा,
भैंसी पाला दूध विकावा,
स्ये निर्भय परदेशों नि जावा।।
बांजा पुंगडों रिंगाल लगावा,   
रिंगाल तै उपयोगी बड़ावा, 
जल्वोटों मा म्वारा बुलावा,
सैत निकाली की सैत बिकावा,
लया-राडू कु तेल बड़ावा,
लगला-बोटियों भी खूब लगावा,
स्ये निर्भय परदेशों नि जावा।।
चकबंदी कारा खेती बचावा।।
चकबंदी होली जब मेरा पहाड़,
खेती मा मिललु यखी रोजगार,
आली हरियाली मिललु रोजगार,
कैका मुंड़ा माँ नि होलू भार।।
कैका मुंड़ा माँ नि होलू भार।।
ये गरीबो कु संदेश...
पौंचावा गौं- गौं मेरा गढ़देश,
पौंचावा गौं- गौं मेरा ह्यूं का देश,
चकबंदी कारा मेरा पाहड़े धाती,
हरियाली ल्या मेरा पहाड़े माटी,
चकबंदी कारा मेरा पाहड़े धाती।
चकबंदी करा मेरा पाहड़े धाती।
अतुल गुसाईं जाखी (सर्वाधिकार सुरक्षित)


Sunday, March 29, 2015

सर्व शीक्षा अभियान का बोल्ड लगा था..

सर्व शीक्षा अभियान का बोल्ड लगा था।
मैंने सोचा यहाँ शीक्षा बांटी जा रही है।
अन्दर गया तो देखा
वहां दाल भात उडाई जा रही थी।
मैंने पूछा क्या बात है मास्टर साहब 
खूब घरात खलाई जा रही है,
किसी बच्चे का नामकरण है या
किसी मैडम की बरात आ रही है।
बल
आवा आवा गुसाईं जी
दाल भात तुम भी खावा जी ।
यही तो सर्व शीक्षा है
सरकार की तरफ से बच्चों के लिए भिक्क्षा है।
मैंने कहा ये तो ठीक है लेकिन
टेबल में पाउ पसार के बैठना
कहाँ की शिछा है।
मैं अपने ही मन में सोच रहा था
कभी खुद को तो कभी खुदा को कोस रहा था।
ये माँ ये कैसी है तेरी लीला
सब का भविष्य हो गया ढीला
तू अब भी मौन पड़ी है
बीणा ले के चुप चाप खड़ी है।
अतुल गुसाईं जाखी (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Tuesday, March 24, 2015

नयी पौध, नयी सोच

नयी पौध, नयी सोच
जल्द आ रह है हिमालयन न्यूज़
बाएं से दाहिने,
अतुल गुसाईं ''जाखी''
वशुंधरा ''लाजो''
हेम पंत जी
न्यूज़ रीडर नेहा जी
बृजमोहन शर्मा जी
जगमोहन सिंह ''ज्याड़ा'' जी
प्रदीप सिंह ''खुदेड़''

Thursday, February 26, 2015

मोदी जी हम वे पहाड़ा का छाँ


मोदी जी हम वे पहाड़ा का छाँ
जख रेल नि चलदी,
बड़ी मुसकिल से त यख गाड़ी मिलदी,
हमरी समस्या आप तै ध्यान मा रखण चैन्द,
हम तै यांका बदला अलग से बजट मिलण चैन्द।
आप नयाँ छाँ मी पता च,
पैला बजट मा पहाड़ों मा रेल नि आई सकद,
पर हमरा घोड़ा-खचरों कु चारा मिली त सकद।
अब आप तै एक अलग से बिल बणाण पड़लू,
या फिर रेल बजट मा  हमुकू अलग बिराण पड़लू।
आखिर हम भी त ये देश का नागरिक छाँ,
बैठ्यां तुमरा ही अच्छा दिनों का सारा छा।
ब्याली ये पहाड़ तै तुमरो बजट पसंद नि आई,
कले कि ये ये पहाड़ हाथ कुछ भी नि आई।
खैर यू पहाड़ त हमेशा ही आंसू बगोंद आई,
ब्याली भी बिचरों दिन भर रुणू राई।
अतुल गुसाईं जाखी (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Sunday, February 22, 2015

न भै अतुल न इन कै त नि ह्वे सकद स्वच्छ भारत।।

न भै अतुल न इन कै त नि ह्वे सकद
स्वच्छ भारत,
नौना तुमरा आलो- काचो छन खांणा,
बटों - बटों मा छन तब थुपडा लगाणा।
जैकु लग जखी लगणू वखी पिचकाणू,
भांती- भांती का बीमारियों धई लगाणू।
न भै अतुल न इन कै........
पीठ पैथर तुम पान गुटका खाई की,
पाल्यों- पाल्यों दीवालों फर छा धुकणा,
पीठ ऐथिर....
स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत कु
नारा छा लिखणा।
न भै अतुल न इन कै........
या...आ 
ब्वारी बेटी तुमरी, खौड-पात
बाटा- घाटों मा छन जमोणा,
अर भैंसा गाडा-गदीनों छा नहोणा।
नि ह्वे सकद स्वच्छ भारत,
सरकार पर छाँ तुम दोष देणा,
अर अफ तुम कुछ ज़िम्मेदारी नि छा लेणा।
न भै अतुल न इन कै त नि ह्वे सकद
स्वच्छ भारत।।
अतुल गुसाईं जाखी (सर्वाधिकार सुरक्षित)

 Date-23/2/2015

Wednesday, February 18, 2015

उत्तराखंड ग्वाया लगाणू।

मेरी किसी राजनेता या किसी पार्टी से जाती दुश्मनी नहीं है, यह कविता मेरा सिर्फ दर्द मात्र है इसे अन्यथा ना ले। इस से पहले भी मैंने कई राजनीतिक व्यंग लिखे,
कई लोगों कू बुरा लगा, कई लोगों ने डराने धमकाने की कोशिस भी की, मैं उन भाईयों को सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ की मैंने आज तक जो भी लिखा, उसे मैंने आप ही लोगो से सुना, समाचार पत्र-पत्रीकाओ मे पढ़ा और उन्ही बातों को सिर्फ मैंने अपने शब्दों मे बयां किया है....फिर भी किसी को बुरा लगे तो माफी चाहता हूँ ...और लिखने के लिए मुझे कोई रोक नहीं सकता क्यूँ की मैं भी आजाद देश का स्वतंत्र नागरिक हूँ। खैर बातें तो होती रहेंगी...हाल फिलाल प्रस्तुत रचना उत्तराखंड ग्वाया लगाणू का आनंद ले।
उत्तराखंड ग्वाया लगाणू।
_______________________
बोला हर दा यू क्या च हूँणू
यू उत्तराखंड क्यां कु रुणू ,
कैले क्वी येका आंशू नि फुंजणु
कैले क्वी ये नि बुथाणू ,
14 साल कु ह्वे गे उत्तराखंड
कैले यू आज भी ग्वाया लगाणू।
कोच येकी ब्वे, कख च येकू बुबा,
कले च यू भूका कु चिल्लाणू,
हर पाँच साल मा उन
द्वि-द्वी आन्दा तुम,
फिर कले च यू आज भी
छोरा – छपिरा सी जिंदगी बिताणू।
कोच उ, जु येकू आँखा घुराणू,
अनाथ सी समझी येतै लत्याणू,
तुम बुना की सब ठीक ठाक चलणू,
फिर कले नीच यू अपणा,
हाथ खुट्टा हिलाणू।
बोला हर दा कुछ त बोला,
14 साल बाद भी कले च यू,
ग्वाया लगाणू।।
अतुल गुसाईं (सर्वाधिकार सुरक्षित)