Thursday, April 6, 2017

डाॅक्टर अगर भगवान कु रूप च त फिर डाॅक्टर देवभूमी मा कलै नि रैन्दिन ?

डाॅक्टर अगर भगवान कु रूप च त फिर डाॅक्टर देवभूमी मा कलै नि रैन्दिन ?
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कुछ दिन पैली कफग मा एक चुटकला पढ़णू छौ- कुछ लोग राम नाम सत्य बोली की एक मुर्दा थै बजारा का रस्ता मडघाट लिजाणा छा, बजार मा द्वी डाॅक्टर च्या दुकान मा च्या पीणा छा जनी जनाजा बजारा मा पौछी त डाॅक्टर साबन पूछी कि लाला जी आज कु मोरी, लालाजीन बोली कि फलणा गौ कु फजितु मोरी गे रै होलू 40,45 साल कु।
अब एक डाॅक्टर हैका डाॅक्टर का कनूड मा ब्वनू च कि यार डाॅक्टर साब ऐ  फजितु तै दवे क्या तिल दीन! बल न यार मिल त नि दीना, बल फिर तिन दीन क्या? बल ना यार मिल भी नि दीना। बल जब तिल भि नि द,े मिल भी नि दे, त यु बजार मा तिसरो डाॅक्टर कु एै।
ब्वनो कु मतलब यु च कि कुछ त हम देवभूमी का लोग यूंका होण से म्वना छा अर कुछ यूंका नि होण से।  हमर पहाड़ मा अधिक्तर फर्जी डाॅक्टर छन जु अतिरी-बितरी कु काम एै जन्दिन पर यूं थै ज्यादा जानकारी नि होण से यु हमरू काम-तमाम भी कैरी देन्दिन। कै थै अगर जुखाम लगणू रैन्द त यु पुटगा पीणा कि दवे दे देन्दिन। कैकु अगर सुल्टु हाथ टुटी गै त यु उल्टा हाथ फर पलस्तर कैरी देन्दिन। वेका बाद दवे फर दवे खाणा का बाद हम पौछी जांदा सीधा मड़घाट। पर दिक्कत या च कि अगर फर्जी डाॅक्टर मा नि जाण त जाण कख च, अच्छा प्राईवेट अस्पलाळ हमरा यख छौ नि छन अर सरकरी मा डाॅक्टर एक मैना सि ज्यादा टिकेन्दु नि च। अर डाॅक्टर टिकेन्दू इलै नी चा कि डाॅक्टर अधिक्तर भैरा महानगरों का रैण ओळ रैन्दिन वै थै सिर्फ पैसा कमाण से मतलब च जु कि उ पहाड़ मा रै कि नि कमै सकद। मि सबों कु नि बोली सकदू पर मुख्य  कारण यु ही च। दुसरों कारण वे थै हमरी भाषा समझ मा नि आंदी यु भी मुख्य कारण च, ज्वान रोजगारा बाना महानगरों मा छन गौं मा दान-दान आदिम छन अर वीं बिमार होन्दिन। उ दगड़ दिक्कत या च कि अगर क्वी बिमार होंद त उ पैली डाॅक्टर मा नि दिखान्द उ सोचद कि पित्र दोष लग्याॅ होला, हमरू देवता दोष लग्याॅ होला, 10-15 दिन उच्यणू धरदा-धरदा कटे जन्दिन अर जब बिमरी ज्यादा बडी जान्दी तब जैकी डाॅक्टर मा जन्दिन। डाॅक्टर मा जै की डाॅक्टर पुछद माता जी, बाबा जी क्या हो रहा है? त वख मा भाषा कि समस्या खडी ह्वे जांद, माता जी भी अपणी ही बोली मा बबा धपाग होणी चा, चसग भी जाणा छन अर स्वास भी फुलणू च अर बै हौण फरकी नि सकणू छौ। डाॅक्टर इथगा ही सूणी की परेशान ह्वे जांद कि यार इन मेसी बिमरी त किताब मा पौढ़ी नि छौ न कखी सूणी या नै बिमरी कख बटी एै! फिर वे विचरा मा भी एक ही रस्ता रान्द जथगा जल्दी ह्वे साकू यख बटी भगण मा ही फैदा च। इलै मिन सुरू मा लेखी छौ कुछ त हम यूंका होण से म्वना छा कुछ नि होण से।
अतुल गुसाई जाखी (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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